-3.45%

Mithila Bhasha Ramayan

Rs.531.00

About Editor :-

मनीषी ओ महापुरुष कोटिक कवीश्वर चन्दा झा (1831-1907) मिथिलाक सांस्कृतिक, सामाजिक एवं साहित्यिक  क्षेत्रमे नवजागरण ओ नवचेतनाक संचार कयनिहार थिकाह। मिथिलाक अतीत गौरव, सांस्कृतिक श्रेष्ठता, मातृभाषा मैथिलिक समृद्ध साहित्य-परम्परा, मातृभाषाक माहात्म्य एवं ओकर अभिवृद्धिक सार्थकताक अभिज्ञान करएबाक श्रेय कवीश्वरेकेँ छनि। ओ अपना समयमे पूर्वोत्तर भारतमे प्राच्य-विद्या, पुरातत्त्व ओ प्राचीन मैथिली साहित्यक एहने विशेषज्ञ ओ अन्वेषक छलाह जनिकासँ कतेको देशी-विदेशी विद्वान लोकनि मार्ग-दर्शन पबैत रहलाह। ओ अत्यन्त प्रतिभाशाली कवि एवं गम्भीर चिन्तक छलाह। लोक-निन्दाक विनु परवाहि कयने, साहसपूर्वक मैथिलीक लोकप्रचलित भाषाकेँ प्रयोग-प्रश्रय देलनि। ओकर लालित्य एवं अजस्त्र अभिव्यंजना सामर्थ्यक उपयोग कऽ अबाध वैविध्यपूर्ण लोकानुरंजक तथापि गम्भीर साहित्य-सर्जनसँ मैथिली साहित्यमे एकटा नवयुगक प्रवर्त्तन कयलनि। आधुनिक मैथिली साहित्यक जनक कवीश्वर चन्दाझा अपन भूमि ओ भाषाकेँ अभिनव दृष्टि, दिशा संकेत ओ चिन्ताधारा प्रदान कयलनि।

मैथिली साहित्यिक गीत-विधाक पारम्परिक स्वरूपमे परिवर्तनक संगहियो अभिनव विधा-गद्य (कथा) मुक्तकओ  प्रबन्धकाव्यक प्रभावी प्रयोग कयलनि। एहिमे निहित भाव, भाषा, छन्द ओ वैचारिकताक नव्यता साहित्यक धाराकेँ अतीतजीवितासँ मोड़ि प्रवाहक नव धरातल प्रदान कयलक। कविश्वरक काव्यक भाव-भूमिमे जँ एक दिस भक्ति, वैराग्य, योग ओ संयत श्रृंगार छलनी, तँ दोसर दिस सामयिक परिस्थिति, मिथिला-महिमा, देश-दशा, सांस्कृतिक क्षरण, सामाजिक कुरीति, कुशासन ओ जनसामान्यक दुख-दर्द सेहो मुखर प्रखर छलनी। व्यंग्य-वक्रोक्ति, व्याजोक्ति-अन्योक्ति द्वारा आलोचना करबाक जे साहस कवीश्वर देखौलनि से एखनो हुनक काव्यकँ प्रासंगिक बनौने छनि।

मिथिला भाषा रामायण कवीश्वर चन्दा झाक ओहन महान् एवं गम्भीर प्रबन्ध रचना थिकनि जे हुनका पूर्ण यशस्वी ओ चिरस्मरणीय बना देलकनि। मैथिली साहित्यक ई गौरव-ग्रन्थ भारतीय वाङमयक रामायणीय परम्परामे सेहो एकटा स्थान बना लेलक अछि। मिथिला भाषा रामायण मे गम्भीर दार्शनिक चिन्तनक संगहि काव्यतत्त्व ओ  लोकतत्त्वक अदभुत समन्वय भेल अछि। विभिन्न प्रसंगमे कविक कतोक मौलिक उद्भावना अतिशय चमत्कारपूर्ण अछि। प्रबन्धोपयोगी चौपाइ, दोहा ओ सोरठाक अतिरिक्त परम्परित वार्णिक, मात्रिक, मिथिला-देशीय रागाधृत, विभिन्न भास ओ गीति-रीतिक शतावधि प्रकारक छंदक प्रयोग ने केवल चन्दाझाक कविकर्मक सिद्धहस्तताक द्योतक अछि, अपितु ई मिथिला भाषा रामायण केँ भारतीय भाषाक अन्य रामायणसँ भिन्न ओ विशिष्ट बना देने  अछि। पाठ्यधर्मी छन्दक संगहि राग-भास-बद्ध गेय गीतक समावेश, लोकप्रचलित सहज भाषा, लोकोक्ति-उपलक्षण इत्यादि विशद् प्रयोग एवं विविध मार्मिक प्रसंग ओ संवाद सभक कारणे ई काव्यकृति अपन रचना-कालहिमे लोकप्रिय भऽ जन-जीवनमे बसि-रसि गेल। से, ओ लोकप्रियता सम्प्रतियो अक्षुण्ण छैक।

Compare
SKU: Maithili Ramayan Categories: , Tag:

Description

Writter                    :- Kavi Chanda Jha

Editor                     :- Baldev Mishra (1890-1975), Ram Nath Jha (1906-1971)

Binding Type           :-   HB

Categories              :-Kavya

Language               :-Maithili

Isbn                          :- 978-81-260-0692-2

First Edition           :- Raj Press Co. Ltd., Darbhanga (1955)

Publication             :-  Sahitya Akademi, New Delhi

Publication Year    :- 1999,2010,2024

Page                        :-436

About Editor :-

Ram Nath Jha :- प्रतिभा, पाण्डित्य, विभिन्न भाषा ओ साहित्य पर समान अधिकार, मातृभाषाक गौरव सम्पादनक, अविचल धैर्य, रचनात्मक कार्य करबाक अप्रतिम उत्साह, अपन नित नवीन शोध ओ अनुसन्धान कार्य एवं स्थायी महत्वक साहित्यक निर्माण करबाक ओ करएबाक हेतु ईर्ष्याक पात्र बनल जाहि साहित्य सेवी दिस अनायास ध्यान चल जाइत अछि, जे अपन दृढ़ता ओ विशुद्ध साहित्यिक व्यक्तित्वक विशालताक कारणे ककरहु सँ समता नहि राखैत छथि, जनिक अन्तरंग ओ वहिरंग मे भेद नहि छैन्हि, जे अपन हंसवृत्ती समीक्षाक कारणे मैथिली साहित्य जगत मे प्रख्यात छथि, जे स्वयं विद्या, साहित्य ओ संस्कृतिक एक संस्था भए गेल छथि, जे मैथिली साहित्यक इतिहास मे कोनो राजा राममोहन राय अथवा केशवचन्द्र सेन सँ कम नहि छथि तनिके नाम छैन्हि आचार्य रामनाथ झा।

Baldev Mishra :- गणित, ज्योतिष ओ न्यायशास्त्र सदृश क्लिष्ट ओ नीरस विषयक वैदुष्य प्राप्त करितहुँ, प्राकृत-पाली-तिब्बती सदृश कर्कश ओ अप्रचलित भाषाक पाण्डित्य प्राप्त करितहुँ, मिथिलाक्षर-देवनागरीक संग-संग गुप्त-कुटिल-शारदा आदि कतोक अप्रचलित लिपिक सुविज्ञ होइतहुँ पंडित बलदेव मिश्र ज्योतिषाचार्य संवेदनशील साहित्यकारक प्रतिभा-संस्कारसँ समन्वित रहथि। हिनक संपूर्ण जीवन एक रचनाकार-साहित्यकारक जीवन रहए। लिखब ओ लिखैत रहब हिनक-व्यसन रहए, हिनक जीवनक उद्देश्य रहए। मुदा साहित्यकारक यश ई अर्जित कएल मैथिली अहिमे लीखी। मैथिलीमे ई निबन्ध-प्रबन्ध लिखल, आलोचना-समालोचना लिखल, जीवनी-संस्मरण लिखल, इतिहास-साहित्येतिहास लिखल, कविता-मुक्तक लिखल ओ संकलन-सम्पादन करैत अपन आत्मकथासेहो लिखल। मैथिलीमे लिखिनिहार कोनहु संस्कृत-पंडितक रचनासँ हिनक मैथिली-रचना अधिक अछि, कम तँ नहिएँ अछि। आ तेँ ई आइ भारतीय साहित्य-निर्माताक पंक्तिमे सुप्रतिष्ठित छथि, यशस्वी छथि।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Mithila Bhasha Ramayan”

Your email address will not be published. Required fields are marked *