Description
About Books:-
कथाकार शैलेन्द्र झाक ई दोसर कथा-संग्रह थिक । एहि सँ पूर्व हिनक पहिल कथा-संग्रह ‘सिनेहक धार‘ वर्ष 2022 ई. मे आयल रहय । शैलेन्द्र जी लगातार कथा लीखि रहल छथि से एक आश्वस्ति-दायक बात थिक । हिनका अपन माटि-पानि सँ बहुत स्नेह छनि । ई चाहैत छथि जे लोक अपन जड़ि के नहि छोड़य । अपन धरोहर, अपन संस्कृति के नहि बिसरय । हिनक कथा सभ मे ई बात बेर-बेर उभरैत अछि जे खेत-खरिहान, जमीनक खण्ड खाली भौगोलिक इकाई नहि थिक, इतिहास, संस्कृति, परम्परा ओ धरोहरिक केन्द्र थिक । विस्थापन भोगैत मैथिलक ई असालतन पीड़ा कोनो ने कोनो व्याजें शैलेन्द्र जीक कथामे सेहो देखल जा सकैत अछि ।
जमीन सँ जुड़ल जे कृषि-जीवन अछि, जाहि मे सामुदायिक भावना विद्यमान रहैत छैक, से समाज, परिवार आ व्यक्ति-व्यक्तिमे एक प्रकारक सम्बन्ध-बन्ध कायम रखबाक मूलाधार थिक । ई एहन मूलाधार थिक जे अन्ततः व्यक्तिमे मनुष्यताक क्षरण नहि हुअ’ दैत छैक । हिनक ‘अन्हरजाली‘ कथामे ई बात आयल अछि जे मूल बात मनुष्यता थिकैक । अपन रह’ कि आन, जँ ओकरामे मनुष्यता नहि छैक त’ किछु नहि । मनुष्यता थिकैक प्रेम, सदभाव, दुख-तकलीफ मे मदति करबाक इच्छा, करूणा । रहन-सहनसँ लोकक परिचय नहि होइत छैक । विपत्ति पड़ला पर परिचय होइत छैक । ई बात ओ भाव के शैलेन्द्र जीक बहुतो कथामे विभिन्न भंगिमामे देखल जा सकैत अछि । वस्तुतः यैह कहबाक लेल ओ कथा लिखैत रहल छथि ।
वर्तमान जीवन मे बहुतो बदलाओ आयल अछि । एक जे प्रमुख परिवर्तन आयल अछि से उत्पादक जीवन सँ उपभोक्ता जीवनमे अबैत समाज अछि । वर्तमान सत्ता-व्यवस्था भूमण्डलीकरण ओ बाजारवाद के समर्थन ओ प्रोत्साहन दैत उत्पादनक साधन सभ के पैघ-पैघ व्यापारी सभक हाथमे केन्द्रित क’ रहल अछि । एहना मे पारिवारिक स्तर पर घरेलू उत्पादनमे लागल लोक विभिन्न समस्यामे फँसि उत्पादन सँ विमुख भ’ रहल अछि । सेवा कार्य अथवा अन्य विभिन्न क्षेत्रमे अपन हुनर अथवा श्रम के बेचि गुजारा करबा पर विवश अछि । संगठित अथवा असंगठित क्षेत्रमे चाकरी क’ अपन गुजर चला रहल अछि । सरकारी अथवा सार्वजनिक क्षेत्रमे नोकरीक अवसर घटि रहल अछि । कृषि-कार्य अलाभकर होइत गेल अछि । उपभोक्ता बनैत समाज, निजी संस्थामे काज करैत लोक, सामर्थ्य सँ बेसी परिश्रम करबाक बाध्यता, कार्य स्थल पर उत्पन्न विभिन्न तनाओ सँ वैयक्तिक आ पारिवारिक जीवनमे विभिन्न तनाओ, चिन्ता-वेगरता, भय उत्पन्न भ’ रहल अछि । शैलेन्द्र जीक विभिन्न कथाक पृष्ठभूमि एहने स्थिति सँ निर्मित भेल अछि । संवेदनाक क्षेत्र सीमित होइत जायब, अपन आ आनक सम्बन्धमे विचार बदलब, सामाजिक ओ पारिवारिक सम्बन्धमे राग-भावक होइत कमी के एहि संग्रहक विभिन्न कथामे देखल जा सकैत अछि ।
वर्तमानमे एक परिवारमे सामान्यतया तीन पीढ़ीक लोक छथि । हुनका लोकनिक सोच-विचारमे स्वाभाविक रूपें अन्तर अछि । एहि तथ्य के अपन कथा सभ मे रखैत शैलेन्द्रजी पारिवारिक सामंजस्य पर जोर दैत छथि । परिवारमे रहैत विभिन्न पीढ़ीक लोकक बीच वैचारिक टकराहटि स्वाभाविक अछि । लोक अपन हिसाब सँ जिनगी जिअ’ चाहैत अछि । पुरना पीढ़ीक लोक खास क’ जकर जीवन नेनपनमे गाममे बीतल छैक से शहरमे सेवा-निवृत्ति के बाद गामेमे रह’ चाहैत अछि । वस्तुतः एहन लोक शहरमे रहैतो कहियो शहरी नहि भ’ सकल । गाम ओकर मोनमे सदैव जीवित रहलै । गाममे रहबाक अर्थ ओ अपन लोकक बीच रहब बूझैत अछि । अपन संस्कृति-संस्कार संग जीयब बुझैत अछि । ‘अप्पन घर‘ मे रह’ चाहैत अछि । ‘बेचैन जिनगी‘ कथाक शत्रुघ्न बाबू एहने लोक छथि । ओ बेटा-पुतहु लग दिल्ली अबितो छथि त’ किछुए दिनक बाद कछमछी लागि जाइत छनि । असल मे असगर बैसल-बैसल मोन उबिया जाइत छनि । हुनकर अपन सोच-विचार छनि । एकरा पीढ़ीक अन्तर सेहो कहि सकैत छी । ओ कहैत छथि “आइ-काल्हि लोक चाहैत छैक जे जनमिते सभ सुख-सुविधा भ’ जाइक । पुरा जिनगी बैंकक किश्त सधबैत-सधबैत पुन: प्रात भेल रहैत छैक । आई ई किश्त त’ काल्हि ओ किश्त । सुख इएह थिकैक की ? हमरा त’ लगैत अछि जे अखुनका धिया-पूताक जिनगी लोन लेब आ किश्त सधबैक लेल बनल छैक । जुलुम भ’ रहलैए । एहि देश के लोक कृषि-प्रधान कहैत छैक । पता नहि कोना ई देश कृषि-प्रधान सँ किश्त-प्रधान भ’ गेलैक ?”
कथामे शत्रुघ्न बाबूक ई टिप्पणी देश-समाजमे आयल बदलैत जीवन-दृष्टि के सेहो अभिव्यक्त करैत अछि । ई बदलल जीवन-दृष्टि बाजारबादक कारणे आयल अछि । पहिने जत’ बचत के महत्ता छल, सादा जीवन, उच्च विचारक महत्ता छल ओत’ आब खर्च के, ॠण लेबाक महत्ता अछि । विलासी आ तड़क-भड़क बला जीवन-शैलीक महत्ता अछि । आइ लोभ आ डर मनुक्खक संचालक शक्ति भ’ गेल अछि । लोक कोनो काज या त’ लोभे करैत अछि अथवा डरें करैत अछि । ‘चक्रचालि’ कथामे यैह लोभ बैजूक दुर्गतिक कारण बनैत अछि । भौतिक सुखक आकांक्षा मे लिप्त मनुक्ख अपना के न्यायोचित सिद्ध करबाक लेल राशि-राशि के तर्क-कुतर्क गढ़ैत अछि । अपन कर्तव्यविमुखता के जीवन जीबाक कला कहि अपना के सही ठहरेबाक प्रयास करैत अछि । ‘जीवन जीबाक कला‘ कथा मे पाइ कमेबाक मशीन बनल प्रभास दुखीत मायक प्रति अपन कर्तव्य के पाइक बलें दोसरा पर छोड़ि अपने स्वतंत्र आ मस्त रह’ चाहैत अछि । एकरे जीवन जीबाक कला बुझैत अछि । रहन- सहन, जीवन- शैली, संस्कृति-संस्कार मे जे एहि प्रकारक फर्क आबि रहल अछि, विरोधाभास उत्पन्न भ’ रहल अछि तकरा ई कथा अभिव्यक्त करैत अछि ।
ई बात ठीक अछि जे गाममे रहि अथवा पारम्परिक रूपसँ कृषि सँ जुड़ि सभक जीवन- निर्वाह नहि भ’ सकैत छैक । तैं स्वाधीनताक बादे सँ शहर सभ मे रोजी- रोजगारक साधनक विकास भेला पर पढ़ल-लिखल युवक सभ शहरमे नोकरी-चाकरीक द्वारा अर्थोपार्जन कर’ लगला । पहिने असगरे नोकरी लेल शहर मे रहैत छला, परिवार संग नहि रहैत छलनि । नोकरी करैत गाम जाइत-अबैत रहथि । पूर्व सँ चल अबैत संयुक्त परिवार व्यवस्था पूरा-पूरी टूटल नहि छल । गामसँ जुड़ाओ बनल रहैत छलैक । क्रमशः गामक संयुक्त परिवार सँ शहरक एकल परिवार दिस गमन शुरू भेल । छठम दशक सँ मैथिली कथा मे संयुक्त परिवारमे पति-पत्नी, पत्नी गाममे आ पति शहर मे, शहरमे पति-पत्नीक संगे रहलाक बाद बिन पढ़ल-लिखल पत्नी आ पढ़ल-लिखल पति आ तकरबाद पति-पत्नी दुनू पढ़ल-लिखल के कथा लिखायल । वर्तमान मे स्थिति बदलल अछि त’ समस्यो बदलल अछि । स्त्री लोकनि औपचारिक शिक्षा ग्रहण कर’ लगली त’ क्रमशः ओहो सभ अर्थोपार्जन लेल नोकरी-चाकरी शुरू केलनि । एहि प्रकारें शहरमे रहैत परिवार आ दाम्पत्य जीवनमे बदलल परिस्थितिक कारण बहुतो सकारात्मक परिवर्तन भेल । पुरूषलोकनिक पारम्परिक श्रेष्ठताक मानसिकतामे सेहो क्रमशः परिवर्तन हुअ’ लागल अछि । नवका पीढ़ीमे एहि बदलाओ के देखल जा सकैत अछि । नोकरी-चाकरी करैत दुनू दम्पति आब घरक काज सेहो मीलि-जुलि क’ कर’ लागल छथि । घर आ बाहरक विभाजन समाप्त भ’ रहल अछि । आब पति सेहो भनसाघरमे पत्नीक संग दिअ’ लगला अछि । मुदा एहि प्रकारक सकारात्मक परिवर्तनक प्रति पूर्व पीढ़ीक स्त्री- पुरूष, सासु-ससुर आदिक सोचमे पूर्वाग्रह एखनो बनले अछि । ‘पूर्वाग्रह’ कथामे पुतहुक प्रति एक स्त्रीक एहने पाछू दिसक सोचके उद्घाटित करैत परिवर्तन के घटित होइत देखाओल गेल अछि । ई कथा कहैत अछि जे लोक वैह दोहरबैत अछि जे स्वयं भोगने रहैत अछि । मुदा समयक संग बदलाओ बहुत जरूरी छैक । एही प्रकारक पूर्वाग्रह बेटा-बेटी मे फर्क करबाक सेहो रहल अछि । ‘आत्मबोध’ कथा एहि प्रकारक फर्क करबाक मानसिकता सँ उबरबाक कथा थिक । माय-बापक प्रति बेटी सेहो ओ सभ कर्तव्यक पालन क’ सकैत अछि जे बेटा क’ सकैत अछि ।
एहि प्रकारें विभिन्न प्रकारक फर्क, सोच-विचार, मानसिकता, विग्रह, पूर्वाग्रह, विरोधाभास, आचार-व्यवहार, शहर आ गामक द्वन्द्व, सेवा जीवनक तनाओ, देखौंस आदि सँ उत्पन्न पारिवारिक जीवनक तनाओ, बाप-बेटाक सम्बन्ध, भाइ-बहीनिक सम्बन्ध, पड़ोसी आ गृहणी ओ घरमे काज कर’ बाली दाइक सम्बन्ध आदि विभिन्न सम्बन्ध-बन्ध सभ के द्वन्द्व के घटना सभक माध्यमे प्रस्तुत करैत शैलेन्द्र जी ओहि मे सामंजस्यक विन्दु के, राग-भाव के प्रमुखता दैत छथि । वस्तुतः कथा सभ मे सैह हिनक कथन, अभिप्राय बनैत अछि ।
आशा अछि शैलेन्द्र जी एहिना लगातार कथा लिखैत रहता आ मैथिली कथा-संसार के नव-नव कथा सँ विकसित करबामे अपन महत्वपूर्ण योगदान दैत रहता ।
शुभकामनाक संग
अशोक
पटना
17.02.2024
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